शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

जी करता जोकर बन जाऊं




जोकर मुझे बना दो जी
मोटी तोंद लगा दो जी।

नाक गाल को खूब सजाकर
गोल गोल गेंदें चिपकाकर
बन्दर जैसे दांत दिखाकर
रोतों को भी खूब हंसाकर।

हंसा हंसा कर आंसू लाऊं
जी करता जोकर बन जाऊं

जोकर मुझे बना दो जी
मोटी तोंद लगा दो जी।


तरह तरह के खेल दिखाकर
उल्टा सीधा मुंह बना कर
कानों में चप्पल लटकाकर
छोटी सी एक पूंछ लगाकर

बच्चों का टट्टू बन जाऊं
जी करता जोकर बन जाऊं।

जोकर मुझे बना दो जी
मोटी तोंद लगा दो जी।
***
कवि :दिविक रमेशश्री दिविक रमेश हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित कथाकार,कवि,एवम बालसाहित्यकार हैं।
आपकी अब तक कविता,आलोचनात्मक निबन्धों,बाल कहानियों,बालगीतों की 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।तथा आप कई राष्ट्रीय एवम अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किये जा चुके हैं।वर्तमान समय में आप दिल्ली युनिवर्सिटी से सम्बद्ध मोती लाल नेहरू कालेज में प्राचार्य पद पर कार्यरत हैं ।(हेमन्त कुमार द्वारा प्रकाशित)।

12 टिप्‍पणियां:

  1. जी करता जोकर बन जाऊँ...
    वाह भई वाह!

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  2. मेरा भी जी करता है खूब हसूं और सबको हसाऊं....और इसका सबसे बढ़िया उदहारण तो जोकर ही है

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  3. कवि :दिविक रमेश जी को इस सलोने से बालगीत के लिए बधाई!

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  4. वाह वाह बहुत बढ़िया! जोकर को देखकर तो मुझे बहुत हँसी आती है! इस कविता को पढ़कर मुझे बचपन के दिन याद आ गए जब सर्कस देखने जाया करती थी और जोकर को देखकर खूब मज़ा आता था!

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  5. Better Presentation......


    दीवाली हर रोज हो तभी मनेगी मौज
    पर कैसे हर रोज हो इसका उद्गम खोज
    आज का प्रश्न यही है
    बही कह रही सही है

    पर इस सबके बावजूद

    थोड़े दीये और मिठाई सबकी हो
    चाहे थोड़े मिलें पटाखे सबके हों
    गलबहियों के साथ मिलें दिल भी प्यारे
    अपने-अपने खील-बताशे सबके हों
    ---------शुभकामनाऒं सहित
    ---------मौदगिल परिवार

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  6. दिविक रमेश जी ने सभी पाठकों को उनकी प्रतिक्रियाओं के लिए धन्यवाद के साथ ही दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित की हैं.
    हेमंत कुमार

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