कोयल ने जब शीशा देखा
हो गई वह तो बहुत उदास
गोरी मैं कैसे बन जाऊं
सोच के पहुंची वैद के पास।
भालू वैद ने कूट पीस कर
दे दी ढेरों क्रीम दवायें
फ़ीस दवा की कीमत उसने
वसूले पूरे दो सौ पचास।
क्रीम दवायें लगा लगा कर
सुन्दर पंख झड़े कोयल के
तौबा की उसने शीशे से
फ़िर से दौड़ी वैद के पास।
फ़ेंक दवायें क्रीम सभी वह
गुस्से में भालू से बोली
गोरी नहीं है बनना मुझको
रखो दवायें अपने पास।
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हेमन्त कुमार
badhiya.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा बाल गीत।
जवाब देंहटाएंwaah, pyaara geet
जवाब देंहटाएंलगा पेड़ पर शीशा था,
जवाब देंहटाएंउसमें मुखड़ा देखा था!
काला था, पर सुंदर था,
सुंदर था या काला था?