रविवार, 7 मार्च 2010

गोरी गोरी कोयल



कोयल ने जब शीशा देखा
हो गई वह तो बहुत उदास
गोरी मैं कैसे बन जाऊं
सोच के पहुंची वैद के पास।

भालू वैद ने कूट पीस कर
दे दी ढेरों क्रीम दवायें
फ़ीस दवा की कीमत उसने
वसूले पूरे दो सौ पचास।

क्रीम दवायें लगा लगा कर
सुन्दर पंख झड़े कोयल के
तौबा की उसने शीशे से
फ़िर से दौड़ी वैद के पास।

फ़ेंक दवायें क्रीम सभी वह
गुस्से में भालू से बोली
गोरी नहीं है बनना मुझको
रखो दवायें अपने पास।

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हेमन्त कुमार

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