गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

कठफ़ोड़वा

घूम घूम कर पेड़ों पर ही
ठक ठक करता मैं कठफ़ोड़वा।

चोंच मेरी है बहुत ही लम्बी
बहुत ही लम्बी बहुत ही पैनी
मोटी से मोटी लकड़ी को
काटे जैसे लुहार की छेनी।

रंग मेरा है गाढ़ा भूरा
उस पर काली भूरी धारी
पर उससे भी अच्छी लगती
मेरे सिर पर कलगी प्यारी।

घूम घूम कर पेड़ों पर ही
ठक ठक करता मैं कठफ़ोड़वा।
*****
हेमन्त कुमार

10 टिप्‍पणियां:

  1. घूम घूम कर पेड़ों पर ही
    ठक ठक करता मैं कठफ़ोड़वा।
    बहुत सुन्दर बालगीत
    लुभावना

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  2. ए कठफोड़वा , तू तो बचपन लेकर आया है--- ठक ठक

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  3. चर्चा मंच पर
    महक उठा मन
    शीर्षक के अंतर्गत
    इस पोस्ट की चर्चा की गई है!

    --
    संपादक : सरस पायस

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  4. चर्चा मंच में मिली चर्चा से यहाँ आया , अच्छा लगा , बच्चो से आपका प्यार जानकार , आपका ब्लॉग अब मेरा पसंदीदा ब्लॉग में से एक बन गया है

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  5. मनोहर बाल कविता भी और कठ फोड़वा पक्षी वाबत जानकारी भी

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