लालच की सजा
(बाल नाटक दृश्य-3 एवं दृश्य-4)
(दृश्य-3)
(
एक मछुआरे की झोपड़ी का दृश्य।मछुआरे की पत्नी बराम्दे में बैठी एक फटा कपड़ा सिल रही है। उसी समय मछुआरा एक टोकरी में कुछ मछलियां लेकर गाना गाता हुआ आता दिखाई पड़ता है।मछुआरा जल्दी से टोकरी एक तरफ रख देता है और मछुआरिन को दोनों हाथों से पकड़ कर खडा करता है और तेजी से गोल गोल चक्कर लगता है।मछुआरिन गुस्से से उसे झिटक कर अपने हाथ छुड़ाती है।)
मछुआरिन—(गुस्से में) अरे छोडो भाई मुझे बहुत काम करने हैं और तुम्हें ठिठोली सूझी है।
मछुआरा—(खुशी से) अरी भागवान मेरी बात तो सुनो—कम करने को तो सारा दिन पडा है।
मछुआरिन—(माथे पर हाथ मारकर) हे भगवान इस आदमी से तो तंग आ गयी हूँ मैं —बोलो क्या कह रहे?
(मछुआरा एक बार फिर मछली की टोकरी उठा कर मंच पर चारों और नाचता है।फिर टोकरा एक तरफ रख कर मछुआरिन का हाथ पकड़ कर गाता है।)
मछुआरा-- राजा से मैं आज मिलूंगा
मछली उन्हें दिखाऊंगा
सुन्दर-सुन्दर मीठी मछली
आज उन्हें मैं खिलाऊंगा।
मछली राजा जी को खिलाकर,
पुरस्कार में पाऊंगा
पुरस्कार में मिलेगा पैसा
मैं अमीर बन जाऊंगा।
राजा से मैं आज मिलूंगा
मछली उन्हें.....।
(मछुआरिन उसे इतना खुश देखकर आश्चर्य में पड़ जाती है।वह एक बार मछुआरे के आगे जाती है,फिर पीछे।वह उसका हाथ फिर पकड़ कर नचाने की कोशिश करता है,मछुआरिन उसे रोककर पूछती है।)
मछुआरिन-- अरे क्या बात है?आज तुम बहुत खुश नजर आ रहे हो?कहीं कोई खजाना मिल गया है क्या?
मछुआरा—(ख़ुशी से) खजाना मिला नहीं है, बल्कि मिलने वाला है।
मछुआरिन-- (उत्सुकता भरे स्वरों में) सच्ची में?कहां मिल रहा है खजाना....? कहां है...मुझे भी तो कुछ बताओ? (दौड़ कर उसके
हाथ से लेकर मछलियां देखती है।)
मछुआरिन-- (मछलियां देखकर गुस्से से) ये मछलियां हैं कि खजाना? तुम्हें तो बस हर चीज में बस खजाना ही दिखायी पड़ता है।
मछुआरा-- अरी भागवान, इन्हीं मछलियों
से ही मुझे खजाना मिलेगा....।
मछुआरिन-- जाओ, बेवकूफ
किसी और को बनाओ। मुझे अपना काम करने दो।
मछुआरा-- मैं सच कह रहा हूं। मुझे इन्हीं मछलियों
से खजाना मिलेगा।
मछुआरिन-- भला कैसे मिलेगा खजाना? जरा मैं भी तो सुनूं।
मछुआरा-- देखो, हमारे राजा को अकाल और सूखे के कारण खाने के लिए मछलियां नहीं मिल पा रही हैं।वह मछली के बिना खाना नहीं खाता।इसीलिए उसने आज ही यह घोषणा करवाई है कि यदि कोई उसे मछलियां
लाकर देगा तो राजा उस व्यक्ति को खूब पुरस्कार देगा।आज संयोग से मुझे एक तालाब में ये कुछ विदेशी मछलियां मिल गयी हैं।मैं
इन्हें राजा को देकर खूब इनाम पाऊंगा।फिर हमारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।
मछुआरिन—(ख़ुशी से चीख कर) अर्रे----भैया तो फिर देर क्यों कर रहे हो
?जल्दी इसे महाराज के पास ले जाओ और पुरस्कार पाओ।(कुछ सोचकर)और हां,एक बात तो सुनो। जरा वह गीत मुझे भी बता दे ताकि,तुम्हारे वापस आने तक मैं भी वह गीत गाती रहूं।
मछुआरा-- लो सुनो वह गीत।
(मछुआरा गाता है)
राजा से मैं आज मिलूंगा,
मछली उन्हें दिखऊंगा
सुन्दर-सुन्दर मीठी मछली
आज उन्हें मैं खिलाऊंगा।
(
गाते गाते वह नाचने लगता है।साथ में मछुआरिन भी नाचती है।)
मछली राजा जी को खिलाकर
पुरस्कार मैं पाऊंगा
पुरस्कार में मिलेगा पैसा
मैं अमीर बन जाऊंगा।
(मछुआरे के साथ मछुआरिन भी गाने लगती है ओर नाचती है।)
मछुआ--मछुआरिन-- (एक साथ नाचते हुए)
राजा से मैं आज मिलूंगा,
मछली उसे खिलाऊंगा...।
(दोनों पूरा गीत गाते हैं ओर नाचते हैं।)
(दृश्य-4)
( राजा के महल का प्रवेश द्वार।पहरेदार ,सैनिक टहल रहे हैं।मछुआरा एक टोकरी में मछलियां ले कर गाता हुआ आता है।)
मछुआरा-- (गाता हुआ)
राजा से मैं आज मिलूंगा
मछली उन्हें दिखाऊंगा
सुन्दर-सुन्दर मीठी मछली
आज उन्हें मैं खिलाऊंगा।
(पहरेदार उसे रोकता है और पूछता है।)
पहरेदार—ऐ मछुआरे,तू बिना मुझसे पूछे कैसे चला जा रहा है?जानता नहीं कि यह महाराजा का राजमहल है ?
मछुआरा-- हा भइया हां मैं जानता हूं कि यह महल महाराजा
का है।मैं महाराज से ही मिलने जा रहा हूं।
पहरेदार-- चल-चल बड़ा आया है राजा से मिलने,चल भाग यहां से ।
मछुआरा-- (खुशामद भरे शब्दों में) सुनिए पहरेदार जी,
मैं बहुत दूर से आया हूं।मुझे महाराज से बहुत जरूरी काम है।
पहरेदार-- (मछुआरे को डांट कर) मैंने कहा न, तू भाग जा यहां से।तेरे जैसे फटीचरों
से मिलने का समय महाराज के पास नहीं है।
मछुआरा-- भइया, मैं महाराज के लिए बहुत अच्छी सी मछलियां लेकर आया हूं।
(पहरेदार मछलियों का नाम सुनते ही उसके पास आ जाता है।)
पहरेदार-- मछलियां...? कहां हैं मछलियां मैं भी तो देखूं?
(मछुआरा टोकरी खोल कर उसे दिखाता है।)
पहरेदार-- अरे वाह,ताजी लगती हैं।
मछुआरा-- हां भैया हाँ एकदम ताजी ही हैं।आज सबेरे ही तो पकड़ा है मैंने इन्हें इसीलिए ये ताजी तो हैं ही और बहुत स्वादिष्ट भी होंगी।इसीलिए तो मैं इन्हें महाराज को देने आया हूं।
पहरेदार-- (मन में सोचते हुए)
अच्छा तो यह मछुआरा राजा को मछलियां दे कर ढेर सारा पुरस्कार पाना चाहता है।(मछुआरे से)सुनो भाई ये मछलियां तुम मुझ ही दे दो।मैं इन्हें महाराज के पास पहुंचा दूंगा।
मछुआरा-- (मछलियों की टोकरी छिपाता हुआ) नहीं-नहीं इन्हें मैं खुद ही महाराज को दूंगा।आखिर मैं इतनी दूर से इन्हें ले कर आया हूं बिना महाराज से मिले कैसे चला जाऊंगा?
पहरेदार-- (कुछ सोचकर)अच्छा ठीक है। मैं तुम्हें महाराज के पास एक शर्त पर ही जाने दूंगा।
मछुआरा-- बोलो भाई कौन सी शर्त है तुम्हारी?
पहरेदार-- देखो,मछलियां देने पर महाराज से जो भी पुरस्कार तुम्हें मिलेगा उसका आधा तुम मुझे लाकर दोगे।अगर मेरी यह शर्त तुम्हें मंजूर है तो अन्दर जा सकते हो।नही तो यहां से दफा हो जाओ।
मछुआरा-- (कुछ देर सोचकर) ठीक है मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है।
पहरेदार-- अच्छा तो तुम अन्दर जाओ।लेकिन याद रखना मुझे धोखा देने की कोशिश मत करना।
मछुआरा-- ठीक है भाई..ठीक है।लेकिन तुम मुझे अपना नाम तो बता दो।नहीं तो तुम्हारा हिस्सा मैं किसे दूंगा?
पहरेदार--(अकड़कर)
मेरा नाम है(अपनी मूंछें ऐंठता है) ‘काना बैल’।भूलना नहीं....हां....काना बैल।
(मछुआरा मछलियां ले कर मुस्कराता हुआ अन्दर जाता है।)
०००
(क्रमशः )
डा०हेमंत कुमार
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-08-2017) को "सुख के सूरज से सजी धरा" (चर्चा अंक 2700) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
स्वतन्त्रता दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दिलचस्प अगले एपीसोड की प्रतीक्षा रहेगी :)
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