लालच की सजा
(दृश्य-5 एवं दृश्य-6)
(दृश्य-5
(राजा का दरबार।बूढ़ा राजा सिंहासन पर बैठा है। चारों तरफ उसके मंत्री और दरबारी अपने स्थान पर बैठे हैं उसी समय मछुआरा मछलियां लेकर आता है।)
मछुआरा-- महाराज की जै हो।
राजा-- कहो युवक ,तुम्हे क्या कष्ट है?मेरे दरबार में किसकी फरियाद लेकर आए हो ?
मछुआरा-- महाराज, न मुझे कोई कष्ट है और न ही मैं किसी की फरियाद ले कर आया हूं।
राजा-- (तेज स्वरों में गुस्से से) तो फिर तुम्हारी यहां आने की हिम्मत कैसे हुई? क्या तुम जानते नहीं कि मेरा समय कितना कीमती है?
मछुआरा-- (कांपते हुए) हुजूर गुस्ताखी माफ हो!
मैं आपके लिए मछलियां ले कर आया हूं।
(राजा अपनी जगह से उछलता है मछुआरे की तरफ बढ़ने की कोशिश करता है और उसी कोशिश में लड़खड़ा कर गिरने लगता है।मंत्री उसे सम्हालता है।)
मंत्री-- धीरज रखें महराज....धीरज रखें ।
राजा—(बहुत निरीह स्वरों में) कैसे रखूं धीरज मंत्री जी....(प्रसन्नता भरे स्वरों में) मछलियां.......अरे वाह!(मंत्री से)अरे मंत्री जी, देखो यह वीर युवक मछलियां
लेकर आया है।(युवक से) युवक, तुम कहां से मछलियां
ले कर आए हो?
लाओ जरा जल्दी लाओ ---अब मुझसे बिलकुल भी नहीं रहा जा रहा जरा मैं भी तो देखूं कौन सी मछलियाँ लाये हो तुम ?
मछुआरा-- (हाथ जोड़ कर) महाराज, मैं दूर गांव का रहने वाला एक गरीब मछुआरा हूं दूर देश की प्यारी, ताजी मछली आपके लिए ही लाया हूं।
(मछुआरा मछलियां ले जाकर राजा को दिखलाता है।राजा उसे सूंघता है।)
राजा-- (मंत्री से) वाह,कितनी प्यारी खुशबू है ?(टोकरी मंत्री को पकड़ाकर) मंत्री जी इस वीर पुरूष को ढ़ेर सारा पुरस्कार दो।बोलो
युवक, तुम्हें
क्या पुरस्कार दिया जाय ?हाथी,घोडे़,धन,जो भी चाहो मांग लो।मैं आज तुमसे बहुत खुश हूँ।
मछुआरा-- नहीं महाराज, मुझे पुरस्कार में धन नहीं चाहिए।
राजा-- (आश्चर्य से) बोलो-बोलो, फिर तुम्हें क्या दिया जाए?
मछुआरा—(सोचते हुए) महाराज, मुझे पुरस्कार में एक हजार कोड़े मारने का आदेश दें।
(सभी मंत्री एवं दरबारी राजा के साथ हंसते हैं।)
मंत्री-- अरे भाई, यह तो सजा हुई। तुम यह सजा क्यों चाहते हो? कोई और पुरस्कार मांगो।महाराज तुम पर प्रसन्न हैं।
मछुआरा-- नहीं महाराज, मुझे यही पुरस्कार चाहिए।
राजा-- अच्छा ठीक है। यदि इसकी यही इच्छा है तो इसे यही पुरस्कार दिया जाय। इसे धीरे-धीरे एक हजार कोड़े मारे जायं।
(राजा की आज्ञा पाकर एक सिपाही मछुआरे को कोड़े मारना शुरु करता है।500 की गिनती पूरी होते ही मछुआरा खड़ा हो जाता है।)
राजा—(हंस कर) क्यों भाई, अभी तो तुम्हारे 500 कोड़े और बाकी हैं।
मछुआरा-- नहीं महाराज, मैं अपने हिस्से के कोड़े खा चुका।बाकी कोड़े दूसरे व्यक्ति को जिसे मैं कहूंगा उसे लगाए जाएं।
(राजा मंत्री दरबारी सभी आश्चर्य से उसे देखते हैं)
राजा—(उलझन भरे स्वर में)तुम्हारी बात कुछ समझ में नहीं आ रही है युवक। साफ-साफ कहो क्या चाहते हो?
मछुआरा-- महाराज, आपके महल के मुख्य द्वार पर नियुक्त पहरेदार ने मुझे मछली लेकर आपके पास इस शर्त पर आने दिया था कि पुरस्कार में प्राप्त
धन में से आधा मैं उसे दे दूंगा।इसलिए पुरस्कार की आधी राशि अर्थात् 500 कोड़े उस पहरेदार को लगाए जाएं।
राजा-- (क्रोध में) कौन है वह पहरेदार! उसका नाम बताओ?
मछुआरा-- महाराज, उसने अपना नाम ‘‘काना बैल”
बताया है।
राजा-- (मंत्री से) मंत्री जी, ‘‘काने बैल‘‘ को फौरन दरबार में हाजिर करवाकर आप उसे दो हजार कोड़े लगवाइए और उसे महल से धक्के देकर बाहर निकलवा दीजिए।ताकि भविष्य में फिर कभी वह रिश्वत लेने की हिम्मत न करे।और हां इस वीर युवक को एक हजार सोने की मुहरें देकर इसे सम्मान सहित इसके घर पहुंचवा दीजिए।
(मंत्री सिपाहियों को काने बैल को लाने की आज्ञा देकर मछुआरे को साथ लेकर खजाने की तरफ चले जाते हैं।)
(दृश्य-6
(प्रारम्भिक संगीत के साथ मंच पर एक तरफ से नट और दूसरी तरफ से नटी नाचते गाते हुए आते हैं।)
नट—(गाता है)
लालच कभी न करना बच्चो
रिश्वत कभी किसी से न लेना।
नटी—(गाती है)
वरना कभी न बढ़ोगे आगे
जीवन भर पछताओगे.....।
नट नटी-(गाता है)- काने बैल ने जैसा खाया
तुम भी कोड़े पाओगे,।
लालच कभी न करना बच्चो,
रिश्वत कभी न किसी से लेना।
( दोनों नाचते हुए मंच पर से जाते हैं।दृश्य यहीं फेड आउट होता है।)
०००
डा०हेमन्त कुमार
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-08-2017) को "चीनी सामान का बहिष्कार" (चर्चा अंक 2701) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह रोचक प्रेरक नाटक :)
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