बुधवार, 2 अगस्त 2017

इनाम

इनाम
                  लेखिका--मोनिका अग्रवाल 

        
राम एक बहुत शरारती लड़का था।वह अपनी क्लास में बहुत शैतानी करता  और सब बच्चों  को भी बहुत परेशान करता था।उसके पापा ने उसे कई बार समझाने की कोशिश की पर वो हँस कर कहता,मैं जानबूझकर कुछ भी नही करता पापा।बस अपने आप हो जाता है।गुस्से में उसके पापा ने राम की पाकेट मनी बंद कर दी और कहा,"अब कोई भी शिकायत नही आनी चाहिए।
        एक दिन सब बच्चे लाइब्रेरी में अपनी-अपनी पसंद की किताबें पढ़ रहे थे।लाइब्रेरी की नई टीचर देख राम ने सोचा,"मैं इन्हें अब नाराज नहीं होने दूंगा। तभी प्रिंसिपल मैडम ने नई लाइब्रेरियन को बुला लिया।लाइब्रेरी मैम के जाते ही बच्चे, बाल से खेलने लगे।एक बच्चा राम से बोला,"आओ बाल से खेलते हैं।अभी थोड़ी देर में ही ब्रेक हो जाएगी ।मैम को पता भी नहीं लगेगा।
राम ने सोचा," इसमें भला क्या बुराई है ? चलो एक बार खेल लेता हूं।राम के दोस्त ने उसकी तरफ बाल फेंकी।बाल राम के हाथ में आने की जगह सीधे जाकर खिड़की पर लगीबहुत तेज आवाज हुयी ---छन्नाक।खिड़की का शीशा टूट गया।कांच टूटने की आवाज से लाइब्रेरी मैम भाग कर आई।टूटे शीशे पर निगाह जाते ही वो सन्न रह गयींसारे बच्चे भी सहमे खड़े थे 
     
      बस मैम का गुस्सा सातवें असमान परगुस्से में वो सब को डांटने लगीं,"बताओ यह कांच किसने तोड़ा ?सच-सच बताओ।वरना आज मैं किसी को भी ब्रेक में जाने नहीं दूंगी।उनका गुस्सा देख बच्चे और भी डर गए किसी में भी सच बोलने की हिम्मत नहीं थी।इसी बीच राम ने लाइब्रेरियन मैम से कहा ,"मैम!यह शीशा मुझसे टूटा है।और उसने सारी बात बता दी।लाइब्रेरियन क्लास में रखी हुई किताबों की अलमारी की तरफ गई और वहां से एक मोटी सी किताब निकाल कर लायीं।मोटी सी किताब देखते ही राम डर गया।उसे लगा आज उसको बहुत जोर की मार पड़ेगी।इतनी मोटी किताब जो है!तभी लाइब्रेरियन मैम ने उसके हाथ में किताब देते हुए कहा," यह लो! यह तुम्हारा इनाम ! यह शीशा तोड़ने की सजा नहीं है यह सच बोलने का इनाम है।उस दिन राम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

लेखिका--मोनिका अग्रवाल 
मैं  कंप्यूटर से स्नातकोत्तर हूं।मुझे अपने जीवन के  अनुभवों को कलमबद्ध करने का जुनून सा है जो मेरे हौंसलों को उड़ान देता है।मैंने कुछ वर्ष पूर्व टी वी व सिनेमाहाल के लिए 3 विज्ञापन और गृहशोभा के योगा विशेषांक के लिए फोटो शूट में भी काम किया  है।मेरी कविताएँ वर्तमान अंकुर, हमारा पूर्वांचल में प्रकाशित हुई हैं।वेब पत्रिका "हस्ताक्षर" में भी मेरी कविताओं को स्थान मिला है।साथ ही अमर उजाला, रूपायन,गृहशोभा में मेरी कुछ कहानियों और रचनाओं को भी जगह मिली है।


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